एक सवाल है आपसे खुदा?
एक सवाल है आपसे खुदा?
ऐसी क्यू हु मैं?
क्यों मैं ख़ूब सूरत नहीं?
क्यों में ओवरफील, ओवरथिंक करती हुं?
क्यों मैं रिश्तौ को खोने से दरती र्हु?
क्यों मै अपनी बाते नही बोल पाती?
क्यों मैं डरने लगी हूं, अपनौ से ही?
क्यों मेरे सपने टूट जाते है?
क्यों हर एक सास ज़हर की तरह लग रही?
क्यों मेरे दिल के टुकड़े बच्चे नहीं,
क्यू मेरा दिल के टुकड़े चूर-चूर हो गए हैं?
क्यों छोटी सी बातों पे रो पड़ती हूं?
क्यों दिन रात आंखों से बेबसी निकलती हैं?
क्यों पहले कोई हंसा के रूला जाता है?
क्यों हर वो कहानी अधूरी रह जाति है,
जिसे मैं पूरा करना चाहती?
क्यों मै इतनी कमजोर हो चुकी हूं?
क्यों मेरे आश की डोरी टूट चुकी है?
क्यों रिहाई नहीं मिल पा रही उस रिश्ते से,
जिसने अपने दिल से आजाद कर दिया है मुझे?
क्यों एक मज़ाक बन चुकी हु मैं?
क्यों मुझमैं ज़ार ज़ार भरकर कमीया है?
क्यों किसी की चाहत मेरे लिए आखिर तक नहीं रहती?
क्यों सब वादे टूड जाते?
क्यों मुझसे सब गलत होता है?
क्यों किसी को चाहने से पहले मैं खुद को चाहती नहीं?
क्यों में अपनी खुशी को चुन रही तो आपनौ को तकलीफ हो रही?
क्यों हर वो खुबी नहीं मुझे में जो बखुबी हर शख्स मैं होती है?
क्यों जरूरी है सबका मुझे ना समझ कहना?
क्यों अफसोस होता है अपने लिए हुए फेसलो पर?
क्यों नजरे चुराना पड़ता है,
जब लोग बोलते कहा है वो शख्स जिसपे गुरुर था,
क्यों मेरा गुरुर टूट गया?
क्यों जब जिकर होता है खुशियों का तो रू पड़ती हु?
क्यों मैं तन्हाइयों में हुं,
जबकी दुनिया महफिलो मैं है?
क्यों आखिर मैं मन भर ही जाता है?
क्यों सकल से मासूम और अकल की कच्ची हूं?
क्यों वो छोटे छोटे खाब पूरे करने के लिए मेरे पास हिम्मत नहीं रही?
क्यों मेरे लिए जीना इतना मुश्किल होते जा रहा?
क्यों तारे जमीं पे नहीं आते और मैं आस्मां मैं दफन नहीं हो सकती? क्यों?
क्यों मेरा नसीब ऐसा लिखा?
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