क्या खुबी है मुझमें, सबसे अलग हु मैं, वो क्या है जो मुझे सबसे अलग देखलाता है, पता है हमेशा चुप-चाप रहती हूं, वेशे तो अकेलापन मुझे पसंद नहीं, लेकिन अकेले रहना, अकेले चलना खुबी है मेरी, जब भी देखोगे मुझे ख़ामोश, ना समझ सी, अपने मैं घूम-सूम सी, वैसे तो अपनी अच्छाइयों को नहीं, अपनी कमियों को देखती हूं, रो पड़ती हु जब ये देखती हूं इतनी कमजोर हुं मैं, इतनी खामियां है मुझमें, अपनी परछाई को देख कर बोलती हूं, अहान!काश इतनी लंबी होती मैं बस, देखने को तो हर तरह से कमियां है मुझमें, उन खुबियों वाली लड़कियों की तरह, बेइंतहा खुबियां नहीं है मुझमे, हां! काफ़ी लम्बे जुल्फे नहीं है मेरे, लेकिन अक्सर अपनी बालो पर हाथ फेरती रहती हूं, ये भी है जब आइने मैं खुदको को देखती हूं, तो बोलती हूं मैं भी खूबसूरत हूं, वही उस आइने मैं मेरे साथ कोई खड़ा हो जाए, तो सोचती हूं, इसकी तरह क्यों नहीं मै? हां बहुत negative सोचती हूं मैं, यार negative सोचती हूं, तभी तो मुझे पता चलता है कि सिंके के दो पहलू है, और मैं अलग हूं क्योंकि , मैं पुरे negativity को लेकर, आज भी पूरे बदन, पूरे रूह से मुस्कुराती...
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